मन से उसकी बातचीत हो रही थी
उसने प्यार से बोला, विश्वास दिलाई
की इस मन को प्यार से देक्भाल करेगा
मन उसके सुख दुःख को उससे बोल रही थी
इक दिन उसने विश्वास को टूटके मन को कतोर्था से चिल्लाई
मन भोज को उठाकर, बिना बोले आंसू पोंछने लगा
उसने विश्वास की थोड़ी भी याद नहीं किया
और मन गलत बनकर गलती का भोज उठा रही थी
1 comment:
I'm illiterate in this :(
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