Thursday, September 08, 2011

आखिर ज़िन्दगी क्या है

तन्हाई तन्हाई
दिल के रास्ते में कैसे टोकर मैंने खायी
टूटे कहाब सारे एक मायुं सी है छाई
हर ख़ुशी सो गयी, ज़िन्दगी खो गयी
तुमको जो प्यार किया मैंने तो सजा मैं पायी

कवाब में देखा था एक आँचल
मैंने अपने हाथों में
अब टूटे सपनों के शीशे चुब्ठे हें इन आँखों में
कल कोई था यहीं, अब कोई भी नहीं
बनके नागिन जैसे है सांसों में लहराई

क्यों ऐसी उम्मीद की मैंने
जो ऐसे ना काम हुई
दूर बनायीं थी मंजिल
थो रस्ते में ही शाम हुई
अब कहाँ जून मैं, किसको समझाउं मैं
क्या मैंने चाह था और क्या किस्मत में आई

कुछ गाने ऐसे हें जिसको पदथे वक़्त दिल का दर्पण जैसे लगता है....इस गाने में जो गहराई है, लगता है की लिकने वक़्त कवी ने पूरा मह्स्सोस करके लिखा हो..

No comments: